ग़ज़ल 363 [ 58 A]
221---2121---1221---212 [1]
कहने की बात और है, करने की बात और
कुछ कर्ज़ ज़िंदगी के हैं, भरने की बात और ।
गमलों में जो उगे हैं बताएँगे क्या हमें ,
तूफ़ान आँधियों से निखरने की बात और ।
जड़ से कटे हुओं की तो दुनिया अलग रही
अपनी ज़मीन जड़ से सँवरने की बात और ।
बैसाखियों पे आप टँगे थे तमाम उम्र
खुद के ही पाँव चलने उतरने की बात और ।
आसान रास्ते से तो चलते तमाम लोग
काँटों भरी हो राह गुजरने की बात और।
वादे हज़ार आप किए और चल दिए
अपने दिए ज़ुबान पे मरने की बात और ।
’आनन’ ये लूट पाट हुई रोज़ की ख़बर
गुलशन,बहार, फूल की, झरने की बात और ।
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें