शुक्रवार, 24 मई 2024

ग़ज़ल 378 [ 60 A] : ऐसी भी हो ख़बर कहीं अख़बार में लिखा--

 ग़ज़ल 378 [ 60 A]-ओके

221---2121---1221---212

ऐसा भी हो कभी किसी अख़बार में छपा

’कलियुग’ से पूछता कोई ’सतयुग’ का हो पता ।

 

समझा करेंगे लोग उसे एक सरफिरा ,

कल जो शरीफ़ आदमी था रात में दिखा ।

 

बेमौत एक दिन वो मरेगा मेरी  तरह

इस शहर में ईमान की गठरी उठा उठा।

 

जब से ख़रीद-बेच की दुनिया ये हो गई,

मुशकिल है आदमी को कि ख़ुद को ही ले बचा।

 

हर सिम्त शोर है मचा जंग-ए-अज़ीम का ,

इन्सानियत पे गाज़ गिरेगी, इसे बचा ।

 

मासूम दिल के साफ़ थे तो क़ैद मे रहे

अब हैं नक़ाबपोश , जमानत पे हैं रिहा

 

क्यों तस्करों के शहर में ’आनन’ तू आ गया,

तुझ पर हँसेंगे लोग अँगूठे दिखा दिखा ।

 

 

-आनन्द पाठक-


कोई टिप्पणी नहीं: